हमारे हिन्दू धर्म में धार्मिक प्रतीकों का विशेष महत्व बताया गया है। वास्तु शास्त्रों में भी इन चिन्हों का बहुत महत्व माना गया है। घर या पूजा घर के बाहर आपको ॐ, स्वास्तिक, कलश आदि के दर्शन होंगे। दरअसल वास्तु शास्त्र और हिंदू धर्म के अनुसार इन प्रतीकों को समृद्धि और सकारात्मकता के साथ-साथ सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि घर के काम के बाहर या अंदर बनाए गए धार्मिक चिन्ह हमारे परिवार में खुशियां लाते हैं और इससे हमारे घर में देवी-देवताओं का वास होता है। शास्त्रों में बताया गया है कि इन चिन्हों को बनाने से हमारे घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करतीं, आइए इस लेख के माध्यम से आपको बताते हैं कि वास्तु शास्त्र के अनुसार स्वास्तिक चिन्ह के बारे में क्या बताया गया था।
वास्तु शास्त्र और धार्मिक ग्रंथों में स्वस्तिक चिह्न को शुभता का प्रतीक माना गया है। माना जाता है कि शुभ कार्यों के दौरान स्वस्तिक चिन्ह इसलिए बनाया जाता है क्योंकि इसे बनाने से उस कार्य में शुभ फल की प्राप्ति होती है। आइए इस लेख के माध्यम से हम आपको बताते हैं कि स्वास्तिक का चिन्ह कब और कहां बनाना लाभकारी होता है।
* वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा में बनाना चाहिए स्वास्तिक चिन्ह:
वास्तु शास्त्र के अनुसार बताया गया है कि आप हल्दिया सिंदूर से स्वास्तिक का चिन्ह बना सकते हैं। स्वास्तिक का चिन्ह बनाने की दिशा की बात करें तो इसके लिए ईशान दिशा को सबसे शुभ माना जाता है। इतना ही नहीं वास्तु शास्त्रों में बताया गया है कि स्वस्तिक का चिन्ह पूजा स्थान या घर के मुख्य द्वार पर भी बनाया जा सकता है। ऐसा करने से शुभ फल मिलने के साथ-साथ वास्तु संबंधी समस्याओं के नकारात्मक प्रभाव को भी दूर करने में मदद मिलती है। कहा जाता है कि स्वास्तिक का चिन्ह घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
* स्वास्तिक चिन्ह बनाते समय इन बातों का ध्यान रखें:
वास्तु शास्त्र के अनुसार बताया गया है कि घर के मुख्य द्वार और मंदिर में स्वास्तिक चिन्ह बनाने से वास्तुदोष दूर होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इन दोनों जगहों पर हल्दी से स्वास्तिक चिन्ह बनाएं और उसके नीचे शुभ लाभ लिखें। इस तरह से स्वास्तिक चिन्ह बनाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और आपके घर में देवी की कृपा भी बनी रहती है। स्वास्तिक का चिन्ह बनाने से घर में अलक्ष्मी का वास नहीं होता और मां लक्ष्मी का आपके घर में सदैव वास रहता है। स्वास्तिक चिन्ह बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि यह चिन्ह 9 अंगुल लंबा और चौड़ा होना चाहिए।