हिंदू धर्म में शादी विवाह को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं और सभी तरह के मान्यताओं को बड़े ही अच्छे से पूरा किया जाता है. हिंदू धर्म में सम गोत्र में शादी नहीं की जाती है क्योंकि ऐसा करना पाप माना जाता है.
क्यों नहीं होती है सम गोत्र शादी, शास्त्रों में क्यों है इसकी मनाही, जानिए इसके पीछे का बड़ा वजह
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बात अगर हमारे शास्त्रों की करे तो उसमें जिक्र किया गया है कि संगोत्र में कभी शादी नहीं करना चाहिए. हिंदू धर्म में शादियों के लिए कई तरह की प्रथा चलाई गई है ऐसे ही नहीं कहा जाता है कि हिंदू शादियों का महत्व काफी ज्यादा होता है. हिंदू धर्म की शादियों में हर तरह के मान्यताओं का पालन होता है.
क्यों नहीं होती है सम गोत्र शादी, शास्त्रों में क्यों है इसकी मनाही, जानिए इसके पीछे का बड़ा वजह
सदियों से पहले कुछ ऐसी प्रथाएं हैं जैसे कि हिंदू धर्म से पहले कुंडली को मिलाना कुंडली में सभी तरह के बातों को ध्यान में रखकर शादी की सलाह दी जाती है और इन्हीं रिवाजों में से एक है कुंडली के साथ गोत्र का मिलन. गोद सप्त ऋषि के वंशज का रूप है जिसका अर्थ है सात ऋषि.
सात ऋषि अंगिरा शुभ रात्रि गौतम कश्यप भृगु वशिष्ठ और भारद्वाज है. प्राचीन काल से ही गोत्रों का वर्गीकरण अस्तित्व में है. वास्तव में गोत्र का चलन रक्त संबंधियों के बीच विवाह से बचने के लिए बनाया गया है. शास्त्रों की माने तो एक गोत्र में विवाह इसलिए नहीं किया जाता है क्योंकि पूर्वज हमारे एक ही गोत्र के थे इसलिए गोत्र के लड़का लड़की आपस में भाई बहन हो जाते हैं.
विज्ञान के अनुसार लड़के और लड़की के बीच डीएनए का घनिष्ठ संबंध उनके वैवाहिक जीवन से लेकर संतान प्राप्ति तक बाधा हो सकती है इसलिए इस विवाह को अच्छा नहीं माना गया है. हिंदू धर्म की मानें तो 3 गोत्र छोड़कर ही विवाह करना चाहिए अपना गोत्र माता का गोत्र और पिता की माता यानी अपनी दादी का गोत्र. शास्त्रों की मानें तो 7 पीढ़ी के बाद गोत्र बदल जाता है.