आपको हिंदुस्तान मोटर (HM) द्वारा निर्मित Ambassador कार तो याद होगी. क्या आप जानते हैं कि लगभग आधी सदी तक भारतीय सड़कों पर राज करने वाली एंबेसडर एक यूरोपियन कार है. 1956 में HM ने ब्रिटेन की Morris Oxford से इस कार को इंडिया में बनाने के राइट्स खरीदे थे. एक समय पर इंडियन ऑटोमोबाइल सेक्टर में दबदबा रखने वाली इस पॉपुलर कार की विरासत लिए यूरोपियन कार कंपनियों की स्थिति आज इतनी अच्छी नहीं है. आज हम देखेंगे कि ऐसे क्या कारण हैं जिसकी वजह से इंडिया में ब्रिटेन, जर्मन, फ्रैंच आदि ब्रांड पिछड़ गए.
इंडिया में यूरोपियन कार कंपनियां के खराब परफार्मेंस की लिस्ट लंबी है. Renault Nissan का अलायंस हो या Peugeot और Citroen की पार्टनरशिप, या फिर स्कोडा फॉक्सवैगन का गठजोड़, एशियन कार कंपनियों के आगे इनकी बिक्री काफी कम है. मारुति सुजुकी, हुंडई, किआ के अलावा इंडियन ऑटो कंपनी टाटा मोटर्स और महिंद्रा की परफार्मेंस काफी शानदार है.
ये गलतियां करते हैं यूरोपियन ब्रांड्स
भारतीय बाजार के लिए यूरोपियन कार मैन्यूफैक्चरर्स के नजरिए को उनके कमजोर प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. कारों को आकर्षक डिजाइन और अच्छी तरह से इंजीनियर किया जाता है, लेकिन इनकी लागत काफी ज्यादा होती है. इससे कार की विश्वसनीयता कम हो जाती है. लोगों का एक-दूसरे से ब्रांड के बारे में बात करना भी कंपनियों को नुकसान पहुंचाता है.
बिक्री और टिकाऊपन पर फोकस
अगर कोई ऑटो कंपनी शुरुआत से ही एक मजबूत ऑफ्टर-सेल इकोसिस्टम तैयार नहीं करती है, तो वो फेल हो जाएगी. सभी यूरोपीय ब्रांड बिक्री और टिकाऊपन पर फोकस करते हैं (मॉडल लंबे समय तक चलता है लेकिन लगातार ब्रेकडाउन के साथ) और इससे उनकी पेशकश भारतीय ग्राहकों के लिए मुफीद नहीं होती. वहीं, एशियन कार कंपनियां इंडियन कस्टर्स की जरूरत के मुताबिक सस्ते और प्रीमियम-किफायती मॉडल के साथ आती हैं.
लग्जरी कारों में यूरोप नंबर 1
लग्जरी कार सेगमेंट में कहानी काफी अलग है. यहां, तीन बड़े ब्रांड्स – मर्सिडीज-बेंज इंडिया, बीएमडब्ल्यू इंडिया, और ऑडी इंडिया, सभी यूरोपीय खिलाड़ी हैं. ग्लोबल लक्जरी प्रोडक्ट्स/ब्रांड्स के लिए यूरोप काफी पॉपुलर है. इस बात का ग्राहक के दिमाग पर पॉजिटिव असर पड़ता है. इसके अलावा लग्जरी ब्रांड की कार खरीदने वाले भारतीय ग्राहक भी ग्लोबल लेवल की प्रेफरेंस और टेस्ट रखते हैं.