60 के दशक में बीटल्स बैंड बहुत लोकप्रिय नाम था। इस बैंड के गाने लोगों को खूब पसंद आए. लेकिन 1964 में रिलीज हुआ गाना कांट बाय मी लव आज भी लोगों की जुबान पर है। इस गाने की शुरुआत में सिर्फ ‘मनी’ लगाएं, तो यह कुछ इस तरह होगा- मनी कैन्ट बाय मी लव। खैर, आपको बताएं कि हम यहां बीटल्स और पैसे की बात क्यों कर रहे हैं? आपकी इस उलझन को दूर करने के लिए हम आपको बता दें कि हाल ही में एक स्टडी आई है। इस हिसाब से डेटिंग के लिए पैसों से ज्यादा पर्सनैलिटी की अहमियत होती है।
इससे पहले आपने वह रिसर्च भी पढ़ी होगी कि पैसे से खुशियां खरीदी जा सकती हैं। लेकिन जब डेटिंग की बात आती है, तो पैसे से ज्यादा व्यक्तित्व मायने रखता है। डेली मेल में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क और एसेक्स के शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 10 लाख से ज्यादा लोनली हार्ट्स विज्ञापनों का विश्लेषण किया है।
क्या भारत में डेटिंग के लिए पैसा जरूरी है?
शोधकर्ताओं के मुताबिक, अमेरिका, फ्रांस और कनाडा में पार्टनर चुनते समय आर्थिक कारकों में भारी गिरावट आई थी, लेकिन भारत में सिंगल लोगों को डेट करने के लिए फाइनेंस बहुत जरूरी है। सह-शोधकर्ताओं डॉ क्वेंटिन लिपमैन ने कहा कि हमारे अध्ययन से पता चला है कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में व्यक्तित्व को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। उनका कहना है कि एक बार जब भारत की अर्थव्यवस्था और विकसित हो जाए तो मौजूदा पीढ़ी खुद को आर्थिक रूप से ज्यादा सुरक्षित समझे तो व्यक्तित्व को महत्व दिया जा सकता है।
विज्ञापन विश्लेषण
अनुसंधान ने 1995 में कनाडा और अमेरिका के 41 क्षेत्रीय समाचार पत्रों के विज्ञापनों के साथ-साथ कनाडा, फ्रांस और भारत के प्रमुख समाचार आउटलेट्स के डेटा के साथ-साथ 1950 से 1995 तक के प्रकाशनों का विश्लेषण किया। विज्ञापन, जिन्हें उन्होंने चार अलग-अलग श्रेणियों में रखा। इसमें ‘अर्थशास्त्र’ शब्द का प्रयोग साथी की आर्थिक स्थिति के लिए किया गया था जबकि व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग खुलेपन के लिए किया गया था।
शोध के अनुसार 1950 से 1995 के बीच पश्चिमी देशों में व्यक्तित्व का महत्व बढ़ा, जबकि आर्थिक कारकों में गिरावट आई। 1995 तक, 40 से 45 प्रतिशत शब्द जो महिलाएं अपने साथी के बारे में इस्तेमाल करती थीं, वे व्यक्तित्व से संबंधित थे। इसी तरह पुरुषों के विज्ञापनों में 35 से 40 फीसदी शब्द व्यक्तित्व पर केंद्रित होते हैं। हालाँकि, इस अवधि के दौरान भारत में वित्त और व्यक्तित्व दोनों प्रमुख मुद्दे बने रहे।