लखनऊ, 25 फरवरी (हि.स.)। कला के विभिन्न माध्यमों में सिरेमिक का विशेष महत्व है। देश के अलग- अलग हिस्सों में कलाकार काम कर रहे हैं। मिट्टी में काम कर रहे पोटर्स अपने कलात्मक सोच को अभिव्यक्त के माध्यम से अपना योगदान पॉटरी के विकास में दे रहे हैं।
मृतिका कला की इस अवधारणा को लेकर शनिवार को ललित कला अकादमी क्षेत्रीय केंद्र, लखनऊ में सेरामिक कलाकारों की सामूहिक प्रदर्शनी ’लखनऊ पोटर्स मार्केट’ शुरू हुई। इसका उद्घाटन वरिष्ठ कलाकार जयकृष्ण अग्रवाल, सुरेंद्र, पांडेय राजीवनयन ने दीप प्रज्वलित कर किया। प्रदर्शनी के संयोजक अंजू पालीवाल, अमित वर्मा है।
यदि आप पॉटरी, सिरेमिक का शौक रखते हैं तो आपके लिए ही लखनऊ में चल रही तीन पॉटर्स मार्केट पॉटरी को देखने जरूर जाएं। इस विधा से जुड़े लगभग 16 कलाकारों की कृतियां प्रदर्शनी में रखी गई। इसमें लखनऊ से विशाल गुप्ता, ममता राम्भा, शिबराम दास, अंदिना, दीपा मौर्या है। कानपुर से अदिति दिवेदी, प्रेम शंकर प्रसाद, देहरादून से दुर्गा वर्मा, नई दिल्ली से सोना श्रीवास्तव, बीना नीलरतना, बिजेन्द्र महाली, अहमदाबाद से श्रुति पटेल, शांतिनिकेतन से सृमोंता मण्डल, लखीमपुर से कामता प्रसाद, पुणे से मनोज शर्मा, गोरखपुर से मनोज कुमार की कलाकृतियां शामिल हैं। इस तरह की प्रदर्शनी देश के विभिन्न शहरों में आयोजित हो रही हैं। कला में अभिरुचि रखने वालों के मध्य बहुत लोकप्रिय है।
इसमें टेबलवेयर, पोट्स, ज्वेलरी, कप -प्लेट ,क्रिस्टल पोट्स, सिरेमिक ,टेराकोटा स्क्ल्प्चर, क्रिएटिव एवं ट्रेडीशनल पोटरी आदि प्रदर्शित किए गए हैं। इस प्रकार के कलात्मक पोट्स और सिरेमिक से अपने घरों को सजा सकते है और अपने दैनिक उपयोग में भी प्रयोग कर सकते हैं।
युवा कलाकार भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि क्रिस्टलीय चमक आकर्षक हैं और तुरन्त आंखों पर कब्जा कर लेती हैं। क्रिस्टल इफेक्ट पर काम करने वाले पुणे महाराष्ट्र से आये मनोज शर्मा ने बताया कि क्रिस्टल में जिंक 20 से 25 प्रतिशत होता है। जिंक की मुख्य भूमिका होती है। पॉट को मिट्टी से बनाने के बाद बिस्किट फायर करते हैं फिर गलेजिंग करते है। क्रिस्टलाइन की फायरिंग 1250 से 1280 तापमान पर किया जाता है। यह सधे हाथों का ही कमाल होता है। नियमित रूप से ग्लेज बनाने की प्रक्रिया में काम करने की अपेक्षा क्रिस्टलीय ग्लेज बनाने की प्रक्रिया जो तरीके, तापमान, समय की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि इस इफेक्ट के लिए उपयोग में लाने वाले रासायनिक पदार्थ की पात्र से नीचे जाने की प्रवृत्ति होती है और फायर-साइकिल एकदम सही तापमान माप पर निर्भर करती है। ग्लेज के बहुत सारे इफेक्ट के लिए अलग-अलग रसायनिक तत्व ग्रिस्टली बोरेट, कॉपर कार्बोनेट के प्रयोग होते हैं।
मनोज शर्मा जमशेदपुर झारखंड के निवासी है। उन्होंने वर्ष 2000 में सिरेमिक में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया। तब से आजतक पुणे में अपने को सेरामिक कलाकार के रूप में स्थापित करने के लिए संघर्ष किया, जो अभी भी जारी है। पुणे कात्रज अम्बे गांव में मनोज ने अपना सिरेमिक स्टूडियों बनाया है, जहां अपने विचारों को सेरामिक माध्यम से कलात्मक प्रयोग कर रहे हैं।