खूंटी, 18 अप्रैल (हि.स.)। एक समय था जब तरबूज की खेती सिर्फ बिहार में ही होती थी। गांव-देहात के लोग जब रांची या अन्य किसी बड़ शहरों में जाते थे, तो तरबूज खरीद कर लाते थे, लेकिन अब खूंटी जिला तरबूज उत्पदान का हब बनता जा रहा है।
खूंटी जिला अफीम और गांजा की खेती के लिए बदनाम था, आज वहीं खेतों में तरबूज और खीरा की फसलें लहलहा रही हैं। कुछ साल तक अफीम की खेती कर पैसै कमाने वाले मुरहू प्रखंड के एक किसान बताते हैं कि अफीम की खेती में जितनी कमाई होती है, उतनी कमाई तरबूज और खीरा की खेती से ही हो जाती है। उन्होंने कहा कि अफीम से समाज पर बहूत खराब पड़ता है और पुलिस का लफड़ा अलग रहता है। इसलिए उसने अफीम की खेती छोड़कर तरबूज की खेती पर हाथ आजमाया है। उन्होंने कहा कि तरबूज के साथ ही वह अपने खेत में परवल की भी खेती कर रहा है।
तोरपा प्रखंड के सुुंदारी गांव में तरबूज की खेती करने वाले हीरालाल साहू बताते हैं कि इस वर्ष खूंटी जिले के तोरपा, खूंटी, कर्रा, रनिया, मुरहू और अड़की प्रखंड में लगभग साढ़े चार हजार एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में तरबूज की खेती की गई है।
कर्रा प्रखंड के युवा किसान गणेश महतो बताते हैं कि एक किसान तरबूज की खेती से तीन महीने में औसतन दो लाख रुपये की कमाई कर लेता है। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण के दौरान तरबूज उत्पादक किसानों को बाजार नहीं मिलने के कारण काफी नुकसान हुआ है, लेकिन इस बार खेती भी बंपर हुई है और बाजार भी अच्छा मिला है। मौसम ने भी इस बार तरबूज उत्पादक किसानों का अच्छा साथ दिया है। कर्रा प्रखंड के बिकुवादाग गांव के युवा किसान साकेत कुमार शर्मा बताते हैं कि खूंटी जिले कें तरबूज बड़े-बड़े वाहनों से रांची, खूंटी, कोलकाता, राउरकेला, संबलपुर से लेकर नेपाल तक भेजे जाते हैं।
व्यापारी किसानों के खेत में ही आकर तरबूज की खरीदारी कर रहे हैं। इस बार तरबूज की मांग काफी अच्छी है और कीमत भी अच्छी मिल रही है। किसानों को खेत से ही गोल तरबूज की कीमत सात रुपये प्रति किलो और लंबा किरण प्रजाति के तरबूज की कीमत नौ से दस रुपये प्रति किलो मिल रही है।
नई किस्म के इंग्लिश खीरा और परवल की खेती आधुनिक मचान तरीके से करना किसानों के लिए काफी लाभदायक साबित हो रहा है। सिजेंटा फाउडेशन के सहयोग और प्रेरणा से तोरपा के किसानों ने पहली बार मचान विधि से खीरा की खेती की है। आधुनिक तरीके से इंग्लिश खीरा और परवल की जैविक खेती करने से किसानों को काफी लाभ हुआ है।
तोरपा प्रखंड के डांड़टोली गांव की महिला किसान शबनम टोपनो ने पहली बार छह डिसमिल खेत में इंग्लिश कुकुम्बर की खेती की है। उन्होंने बताया कि अंग्रेजी खीरा की बाजार में काफी मांग है। एक पौधे से पांच से सात किलो खीरा का उत्पादन होता है। सिजेंटा फाउंडेशन के रंजीत वर्मा बताते हैं कि पहली बार प्रायोगिक तौर पर किसानों ने इंग्लिश कुकुम्बर की खेती की है और इससे उन्हें काफी लाभ मिल रहा है। उन्होंने बताया सामान्य खीरा तोड़ने के दो तीन दिनों के अंदर खराब हो जाते हैं, पर अंग्रेजी खीरा आठ-दस दिनों तक खराब नहीं होता। इसके कारण बाजार में इसकी काफी मांग है।