नई दिल्ली: सूरत की अदालत ने गुरुवार को राहुल गांधी को मानहानि मामले में दोषी पाया और उन्हें 2 साल की सजा सुनाई. इसके बाद लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी। जनप्रतिनिधि अधिनियम के अनुसार यदि किसी सांसद या विधायक को दो वर्ष या उससे अधिक की सजा हो जाती है तो उसकी सदस्यता (सांसद या विधायक के रूप में) रद्द कर दी जाती है।
आज लोकसभा का सत्र शुरू होने के समय राहुल गांधी मौजूद थे, लेकिन लोकसभा सचिवालय द्वारा उनकी सदस्यता रद्द किए जाने के बाद उन्हें सदन से बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं।
दरअसल, सूरत कोर्ट के उस फैसले के समय से ही उनकी लोकसभा की सदस्यता अधर में लटकी हुई थी. इतना ही नहीं बल्कि सजा पूरी होने के बाद छह साल के लिए उन्हें चुनाव लड़ने से भी अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
फिलहाल राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म हो चुकी है. हालांकि, सदस्यता बचाने के सभी रास्ते बंद नहीं हैं। उन्होंने सूरत सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। अगर हाई कोर्ट स्टे नहीं देता है तो वे सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं।
अगर उन्हें सुप्रीम कोर्ट में स्टे मिल जाता है तो उनकी सदस्यता बच सकती है, लेकिन अगर उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली तो राहुल गांधी 8 साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ पाएंगे.
इस मामले का ब्यौरा कुछ इस तरह है कि 13 अप्रैल, 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली में उन्होंने कहा था: ‘नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी के सरनेम कॉमन क्यों हैं? हर चोर का सरनेम मोदी ही क्यों होता है?’
राहुल के बयान को लेकर बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ धारा 499, 500 के तहत मानहानि का केस दर्ज कराया है. अपनी शिकायत में, उन्होंने आरोप लगाया कि राहुल ने 2019 की एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कथित तौर पर यह कहकर पूरे मोदी समुदाय को बदनाम किया, ‘हर चोर का उपनाम मोदी क्यों है?’
नतीजतन, सूरत अदालत ने उन्हें दोषी पाया और ‘मोदी-सरनाम’ बयान देने के लिए 2 साल की सजा सुनाई। राहुल ने ये बयान 2019 में चुनाव से पहले दिए थे। कोर्ट ने 15 हजार रुपये के मुचलके पर जमानत देते हुए राहुल की सजा को 30 दिन के लिए निलंबित कर दिया है। इस बीच राहुल इसे ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकते हैं।
सूरत के जज ने अपने 170 पेज के फैसले में लिखा है कि आरोपी खुद सांसद (संसद सदस्य) है। और सर्वोच्च न्यायालय (एक अन्य मामले में) द्वारा दी गई सलाह के बाद भी उनके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है।