आज पूरा देश हनुमान जयंती का त्योहार मना रहा है। हनुमान जी को शिवजी का 11वां रूद्र अवतार भी माना जाता है। सनातन धर्म के अनुसार हनुमान जी चिरंजीवी यानि अजर अमर हैं। माना जाता है कि वह आज भी इस धरती पर मौजूद हैं। सिर्फ हनुमान जी ही नहीं बल्कि उनके अलावा सात और ऐसे चिरंजीवी मौजूद हैं जो अमर हैं। आज हम इन्हीं के बारे में जानेंगे।
बजरंगबली जी के अलावा ये 7 लोग भी हैं अमर, आज भी धरती पर है इनका अस्तित्व
Read Also: साईं बाबा पर दिए बयान को लेकर अब बैकफुट पर आए धीरेंद्र शास्त्री,बोले-मैंने उनका अपमान नहीं किया
हनुमान जी
भगवान शिव के अवतार कहलाने वाले हनुमान जी के पास अमरत्व का वरदान है। मान्यताओं की माने तो श्रीराम ने अयोध्या छोड़ बैकुण्ठ पधारने वाले थे। तब हनुमान जी ने उनसे विनती की कि क्या वे इस धरती पर ही रुक सकते हैं? श्रीराम उन्हें मना नहीं कर सके और उनकी इच्छा पूरी करते हुए उन्हें धरती पर हमेशा अमर रहने का वरदान दे दिया।
बजरंगबली जी के अलावा ये 7 लोग भी हैं अमर, आज भी धरती पर है इनका अस्तित्व
विभीषण
विभीषण लंकापति रावण के छोटे भाई हैं। हालांकि वह राम भक्त भी हैं। उन्हीं की मदद से राम ने रावण का संहार किया था। देवी सीता को रावण की कैद से आजाद कराने में विभीषण की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इससे खुश होकर भगवान राम ने न सिर्फ उन्हें लंका नरेश बनाया बल्कि अजर-अमर होने का वरदान भी दिया।
परशुराम जी
परशुराम जी भगवान विष्णु के 6वें अवतार के रूप में भी जाने जाते हैं। वह श्रीराम से पहले अवतरित हुए थे। उनके पास भी अमर रहने का वरदान है। वह शिवजी के परम भक्त हैं। इन्हीं की तपस्या और आशीर्वाद से उन्हें ये वरदान प्राप्त हुआ है। वह शिवजी ही थे जिन्होंने उन्हें तपस्या से प्रसन्न होकर फरसा दिया था। परशुराम इसे हमेशा अपने साथ रखते हैं।
महर्षि वेद व्यास
महर्षि वेद व्यास को विष्णुजी का अंश माना जाता है। उनका असली नाम कृष्ण द्वैपायन था। उनका जन्म पराशर ऋषि और सत्यवती के घर हुआ था। उन्होंने श्रीमदभगवद् महापुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों को लिखा था। पौराणिक कथाओं कि माने तो वेद व्यास कलिकाल के अंत तक जींद रहेंगे। इसके बाद वह कल्कि अवतार के साथ जीवन व्यापन करेंगे।
ऋषि मार्कण्डेय
ऋषि मार्कण्डेय का नाम भी चिरंजीवी की लिस्ट में शामिल है। उन्हें यह अमरता का वरदान भगवान शिव से मिला है। वह शिवजी के परम भक्त हैं। उन्होंने शिवजी को खुश करने के लिए घोर तपस्या की थी। साथ में महामृत्युंजय मंत्र की सिद्धि भी की थी। इससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान दे दिया।
राजा बलि
राजा बलि दैत्यों के महाराजा हुआ करते थे। वह इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने सभी देवताओं को पराजित कर दिया था। उनके प्रकोप से समस्त लोकों में हाहाकार मची थी। ऐसे में सभी देवता मदद के लिए विष्णुजी के पास गए। विष्णुजी ने बामन रूप धारण किया और राजा बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली। उन्होंने दो पग में पृथ्वी तो तीसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। ऐसे में राजा बलि को ये दोनों लोक छोड़ना पड़ा, लेकिन विष्णुजी ने उन्हें बदले में पाताल लोक दे दिया। कहा जाता है कि वह आज भी यहीं रहते हैं।
कृपाचार्य
कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा हैं। वह कौरवों और पांडवों दोनों के गुरु रह चुके हैं। उनकी बहन कृपी की शादी द्रोणाचार्य से हुई थी। कृपाचार्य की गिनती सप्तऋषियों में होती है। वह उन तीन तपस्वियों में से एक हैं जिनके सामने साक्षात श्री कृष्ण प्रकट हुए थे। उन्होंने दुर्योधन को पांडवों से सन्धि करने की सलाह दी थी। हालांकि दुर्योधन ने ये सलाह नहीं मानी। लेकिन कृपाचार्य को अपने अच्छे कर्मों के चलते चिरंजीवी होने का वरदान मिला।
अश्वत्थामा
अश्वत्थामा को आप सभी जानते हैं। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। महाभारत युद्ध में वह कौरवों के सेनापति भी थे। वह भी एक चिरंजीवी हैं।
हालांकि उन्हें यह चीज वरदान स्वरूप नहीं बल्कि श्राप के रूप में मिली है। दरअसल उनके माथे पर एक अमरमणि थी। इसे अर्जुन ने दंडवश निकाल दिया था। फिर कृष्णजी ने उन्हें श्राप दिया कि वे अनंत काल तक धरती पर भटकेंगे।