बेगूसराय, 19 मार्च (हि.स.)। 2024 के लोकसभा चुनाव का बिगुल अभी नहीं बजा है लेकिन सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव की तैयारी तेज कर दी है। अभी बेगूसराय लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है। बेगूसराय संसदीय क्षेत्र में पहली बार कमल खिलाने वाले डॉ. भोला सिंह के निधन के बाद 2019 में हुए चुनाव में गिरिराज सिंह ने विजय प्राप्त किया।
रिकॉर्ड वोट से सांसद बने गिरिराज सिंह केन्द्र सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रालय ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। चुनावी गणित के ख्याल से बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। इस सीट पर कभी कांग्रेस, कभी वामपंथ और समाजवादियों का कब्जा रहते आया है। बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र का गठन 1952 में हुआ था। लेकिन 1977 में खगड़िया जिला के अलौली विधान सभा को मिलाकर बलिया लोकसभा का भी गठन किया गया।
जिसमें खगड़िया जिला का अलौली (सु), बलिया, बखरी (सु), चेरिया वरियारपुर, बरौनी और बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र को शामिल किया गया। जबकि बेगूसराय लोकसभा में बेगूसराय, मटिहानी, लखीसराय, सिकंदरा, बरवीधा और शेखपुरा विधानसभा क्षेत्र था। इस सीट का परिणाम हमेशा अप्रत्याशित ही रहा। यहां से क्षेत्रीय प्रत्याशी के बदले बाहरी का बोलबाला रहा। 1952, 1957 और 1962 में कांग्रेस प्रत्याशी मथुरा प्रसाद मिश्र के कब्जे में रहा था। लेकिन समय अंतराल के बाद सब कुछ बदलता गया।
1967 के चुनाव में सीपीआई के प्रत्याशी योगेन्द्र शर्मा को जीत मिली। लेकिन 1972 के चुनाव में कांग्रेस के श्याम नंदन मिश्र ने बाजी मारी। 1977 में यहां के लोगों ने जनता पार्टी को एक मौका दिया और श्री मिश्र ने कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर इतिहास रच दिया। लेकिन, 1980 में कृष्णा शाही ने कांग्रेस की झोली में यह सीट वापस दिलवा दिया। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में एक बार फिर कृष्णा शाही विजयी रही।
1989 में किसान नेता देवीलाल के आह्वान पर वीपी सिंह की लहर में जनता दल के प्रत्याशी ललित विजय सिंह ने परचम लहराया। लेकिन तीन साल बाद राजीव गांधी की हत्या के बाद की लहर में फिर से कृष्णा शाही ने यह सीट कांग्रेस को वापस दिला दी। 1996 के चुनाव में अप्रत्याशित परिणाम आया। भाकपा प्रत्याशी रामेन्द्र कुमार के चुनाव चिन्ह में गड़बड़ी हुई। जिसके बाद उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सेव चुनाव चिन्ह पर जीत मिली। 1998 और 1999 में कांग्रेस के राजो सिंह ने बाजी मारी। जबकि 2004 में राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने जीत का सेहरा पहना।
इसके बाद एक बड़ा बदलाव हुआ और बेगूसराय जिला के सातों विधानसभा सीट को मिलाकर बलिया को विलोपित करते हुए बेगूसराय लोकसभा का गठन हुआ। जिसके बाद 2009 के चुनाव में जदयू के उम्मीदवार डॉ. मोनाजिर हसन ने एनडीए को जीत दिलाई। इसके बाद 2014 में बेगूसराय से सात बार विधायक रह चुके डॉ. भोला सिंह ने भाजपा का खाता खोला। 2019 के चुनाव में गिरिराज सिंह ने जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और भाकपा प्रत्याशी कन्हैया कुमार को चार लाख से अधिक वोट से पराजित कर पूरे देश को चौंका दिया। गिरिराज सिंह को हराकर कन्हैया कुमार को जिताने के लिए विदेशी ताकत और फंडिंग भी काम नहीं आई।
अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव सामने है, ऐसे में कयासों का बाजार गर्म है। भाजपा सांसद गिरिराज सिंह तथा बेगूसराय के ही निवासी राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सांसद प्रो. राकेश सिन्हा अगले लोकसभा चुनाव के लिए ताबड़तोड़ मेहनत कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने बेगूसराय को राष्ट्रीय क्षितिज पर लाने के लिए 50 हजार करोड़ से अधिक की योजना दी है। ऐसे में दोनों अपने-अपने तरीके से मैदान में उतर गए हैं। गिरिराज सिंह एवं राकेश सिन्हा बेगूसराय में सरकार द्वारा पारित की जा रही और चल रही परियोजना का श्रेय लेने में जुटे हुए हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने बेगूसराय में अब तक का सबसे बड़ा कर बदलाव करते हुए कुशवाहा समाज के राजीव वर्मा को जिलाध्यक्ष बनाकर पार्टी की खाई को पाटने का प्रयास किया। गिरिराज सिंह गुट के माने जाने वाले राजीव वर्मा जिले भर के सभी प्रमुख कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं। उनकी कोशिश है कि कार्यकर्ता एकमत होकर एक बार फिर भी 2024 के चुनाव में यहां भाजपा का कमल खिलाए। लेकिन दोनों संसद के समर्थक श्रेय लेने की होड़ में ऐसे जुटे हुए हैं कि पार्टी के लिए भी तय करना मुश्किल है कि टिकट गिरिराज सिंह को दें या राकेश सिन्हा को । जो हालत बन रहे हैं ऐसे में इन दोनों में से किसी को टिकट मिलता है तो टिकट से वंचित रहने वाले के समर्थक टिकट पाने वाले को हराने की जोरदार कोशिश करेंगे।
जिसके प्रतिफल में महागठबंधन या अन्य प्रत्याशी को फायदा हो सकता है। चुनाव में अभी एक साल से अधिक समय है, ऐसे में हो सकता है कि नेतृत्व गिरिराज सिंह और राकेश सिन्हा के बदले किसी अन्य को बेगूसराय भेज दे। बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र के इतिहास में दूसरे जिला के लोगों को हमेशा प्राथमिकता मिली है। ऐसे में बाहर से आए प्रत्याशी में पद्मश्री सी.पी. ठाकुर के पुत्र सांसद विवेक ठाकुर भाजपा की पहली पसंद हो सकते हैं। बछवाड़ा विधायक सुरेन्द्र मेहता को ही कहीं पार्टी टिकट ना दे दे। हालांकि, भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय मंत्री और विधान पार्षद रह चुके रजनीश कुमार को भी रेस से बाहर नहीं किया जा सकता है।
महागठबंधन की बात करें तो राजद के खाते में अगर यह सीट जाती है तो 2019 चुनाव में प्रत्याशी रहे डॉ. तनवीर हसन एक बार फिर मैदान में उतर सकते हैं। वैसे बलिया के सांसद रह चुके और फिलहाल चेरिया बरियारपुर के विधायक राजवंशी महतो को भी राजद नेतृत्व टिकट दे सकता है। लेकिन महागठबंधन से कांग्रेस टिकट का दावेदार है। एक बार फिर अमिता भूषण को नेतृत्व टिकट दे सकता है। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए चर्चित छात्र नेता कन्हैया कुमार ने जिस तरह से राहुल गांधी के साथ पूरी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल रहे, इससे कयास लगाया जा रहा है कि विगत चुनाव में बेगूसराय में गिरिराज सिंह के द्वारा बुरी तरह से पराजित किए गए कन्हैया कुमार नए दमखम के साथ मैदान में आएंगे। वरिष्ठ जदयू नेता और पूर्व विधान पार्षद रामवदन राय भी निश्चित रूप से लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरेंगे। हालांकि वह किस दल से मैदान में आएंगे, यह निश्चित नहीं है। लेकिन जिस तरीके से वे जिला में भ्रमण कर रहे हैं, इससे तय है कि वह मैदान में आएंगे। फिलहाल अभी समय बहुत है और देखना यह है कि अंतिम समय में कौन-कौन मैदान में आते हैं।
अब तक कौन-कौन बने बेगूसराय के सांसद :
1952- मथुरा प्रसाद मिश्र (कांग्रेस)
1957- मथुरा प्रसाद मिश्र (कांग्रेस)
1962- मथुरा प्रसाद मिश्र (कांग्रेस)
1967- योगेन्द्र शर्मा (सीपीआई)
1971- श्याम नंदन मिश्र (कांग्रेस)
1977- श्यामनंदन मिश्र (जनता पार्टी)
1980- कृष्णा शाही (कांग्रेस)
1984- कृष्णा शाही (कांग्रेस)
1989- ललित विजय सिंह (जनता दल)
1991- कृष्णा शाही (कांग्रेस)
1996- रामेन्द्र कुमार (भाकपा समर्थित निर्दलीय)
1998- राजो सिंह (कांग्रेस)
1999- राजो सिंह (कांग्रेस)
2004- राजीव रंजन सिंह (जदयू)
2009- मोनाजिर हसन (जदयू)
2014- डॉ. भोला सिंह (भाजपा)
2019- गिरिराज सिंह (भाजपा)